मोदी जीत गए. मेरी प्रतिक्रया थोड़े देर से सही आनी चाहिए थी.. आ रही है। लोग हल्ला कर रहे हैं सांप्रदायिकता की जीत हो गई... मोदी को भी लोगों ने चुना है। आप कौन होते हैं बीच में टांग अडाने वाले? ढेर सारे विरोध के बीच मोदी ने मोदीत्व को परवान चढ़ा दिया।
अब जीत गए हैं..तो कल तक उनका विरोध करने वाले भाई-बंदे भी उनके ही गीत गाएंगे। उनका विरोध.. माफ कीजिएगा उनके विरोध में ताताथैया करके ज़मीन-असमान एक कर देने वाले चैनल भी हार मान गए हं। उन्हें पहले ङी खयाल नही ंरहा था.. कि ये चुनाव गुजरात दंगों के बाद नहीं हो रहे।
दंगो के बाद का चुनाव पांच बरस पहले खत्म हो चुका है। ये चुनाव तो विकास के मुद्दे पर लड़े गए थे। उधर लालू भन्ना रहे हैं। सोनिया जी ने कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक कर ली। किसके सर पर तलवार की धार होगी.. ये भी दिख जाएगा..लेकिन जिन मोदी के खिलाफ विरोधी और उनके दल के भीतर के विरोधी सर उठाए थे। अब नाटक उनके सर को कुचलने को लेकर होगा। खुद को सेकुलर कहने वाले लोग वास्तव में सेकुलर हैं क्या? दरअसल सेक्युलरिज़्म की परिभाषा ही इन्हें याद नहीं।
वोट की खातिर अल्पसंख्यकों (पढ़े- मुसलमानों के लिए) अलग से बजट की व्यवस्था करने वालो के लिए धर्मनिरपेक्षता की बात करनी बेमानी है। मोदी को लोगों ने वोट देकर जिताया है, इस तथ्य को खेल भावना के साथ स्वीकार करें तो बेहतर होगा। जिस पार्टी में परिवार पार्टी से भी ऊपर है, ( और मैं यह कोई नई बात नही कह रहा, सर्वविदित है) उसके लिए व्यक्तिवाद का मुकाबला हास्यास्पद ही है।
युवराज की जय और जय माता दी कहने वाले नौटंकीबाजों के लिए गुजरात भले ही आम चुनाव के लिए कैलेंडर का काम करें, लेकिन गुजरात के लोगों ने यह साबित कर दिया कि जीत उसकी होगी, जो आम आदमी के लिए काम करेगा। जो न खाएगा और न खाने देगा। और हां, युवराज एक बार फिर चुनावी दौड़ में फिसड्डी साबित हुए। यूपी में उनके सघन अभियान ने कांग्रेस की तीन सीटें कम कर दीं, गुजरात में कुछ बढ़त के बावजूद माता-पुत्र टांय-टांय फिस्स ही रहे। हां, जल्दी चुनाव को लेकर घबराने वाले सांसद अब राहत की सांस ले रहे होंगे। क्योंकि लोक सभा चुनाव तो तयशुदा वक्त पर ही होंगे।
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